Last modified on 17 जुलाई 2023, at 03:04

शहतूत के पेड़ / अश्वघोष

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:04, 17 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |अनुवादक= |संग्रह=सीढ़ियो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 कल करेंगे
जो भी करना
आज तो, बस, धूप से बातें करें ।

एक मुद्द्त बाद तो
यह लाजवन्ती
द्वार आई है
प्यार में डूबे हुए
कुछ गुनगुने सम्वाद
अपने साथ लाई है

क्या कहेगा कल ज़माना
सोचकर हम क्यों डरें ।

क्या कभी भी एक क्षण
अपनी ख़ुशी से
भोग पाते हैं
रोटियों के
व्याकरण में ही
समूचा दिन गँवाते हैं ।

इस नियोजित भूमिका को
कल तलक सारांश के घर में धरें ।