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धीरे-धीरे तुम मर रहे होते हो / मार्था मेदेइरोस / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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धीरे-धीरे तुम मर रहे होते हो,
अगर तुम सफ़र नही करते,
अगर तुम पढ़ते नहीं,
ज़िन्दगी की आवाज़ नहीं सुनते,
अगर तुम्हें खुद पर नाज़ नहीं ।

धीरे-धीरे तुम मर रहे होते हो,
गर तुम ख़ुदगर्ज़ी के शिकार हो,
अगर तुम दूसरों की मदद नकारते हो ।

धीरे-धीरे तुम मर रहे होते हो,
अगर तुम अपनी आदतों के ग़ुलाम हो,
हर रोज़ एक ही राह पर चलते हुए –
अगर तुम अपना ढर्रा नहीं बदलते,
अगर तुम्हारे लिबास रंगीन न हो या
तुम किसी अनजान शख़्स से बात नहीं करते ।

धीरे-धीरे तुम मर रहे होते हो,
अगर जज़्बात से बचते हो, तूफ़ानी जज़्बात से
जिनसे आँखों में चमक और दिल में धड़कन उमड़ती है ।

धीरे-धीरे तुम मर रहे होते हो
अगर तुम अपनी ज़िन्दगी बदलते नहीं, जब तुम्हारा काम,
तुम्हारा प्यार, तुम्हारा माहौल ऊबाऊ होने लगे ।

अगर अनजान की ख़ातिर तुम पहचाने को दाँव पर नहीं लगाते,
अगर तुम सपनों का पीछा नहीं करते,
अगर तुम इजाज़त नहीं देते,
कम से कम ज़िन्दगी में एकबार
किसी संज़ीदा सलाह को टाल जाने की ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य