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हार किसी को भी स्वीकार नहीं होती / महावीर उत्तरांचली

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हार किसी को भी स्वीकार नहीं होती
जीत मगर प्यारे हर बार नहीं होती

एक बिना दूजे का, अर्थ नहीं रहता
जीत कहाँ पाते, यदि हार नहीं होती

बैठा रहता मैं भी एक किनारे पर
राह अगर मेरी दुशवार नहीं होती

डर मत लहरों से, आ पतवार उठा ले
बैठ किनारे, नैया पार नहीं होती

खाकर रूखी-सूखी, चैन से सोते सब
इच्छाएं यदि लाख उधार नहीं होती