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नाव थी टूटी मगर पतवार से लड़ता रहा / राम नाथ बेख़बर

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नाव थी टूटी मगर पतवार से लड़ता रहा
मैं हमेशा ज़िंदगी की धार से लड़ता रहा

नून लकड़ी तेल की अदना ज़रूरत के लिए
हाशिये का आदमी बाज़ार से लड़ता रहा

चाँद तारे आसमां से जब नदारद हो गए
इक दिया तब भी घने अँधियार से लड़ता रहा

मैंने संघर्षों का रस्ता उम्र भर छोड़ा नहीं
मैं अगर हारा तो अपनी हार से लड़ता रहा

मुश्किलें ही मुश्किलें हैं ज़िंदगी में 'बेख़बर'
और मैं इन मुश्किलों की मार से लड़ता रहा