Last modified on 23 अगस्त 2023, at 00:28

लोहार / राकेश कुमार पटेल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 23 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश कुमार पटेल |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फूस की मामूली सी झोपड़ी
मिटटी की कच्ची भीत

हांफती हुई सी एक भाथी
कुछ काले से कोयले
कोयले के चन्द टुकड़ो की गोंद में
कुछ सफ़ेद, कुछ लाल सी आग
आग में घुसी कुछ खुरपियां, गंडासे
हंसिये और मुरचायी हुई कुदालें

भारी लोहे के टुकड़े की एक निहाई
एक सुघड़ हथौड़ा
जिससे पिटकर धारदार हो जाती हैं
सारी मुरचायी हुई, जंग खायी हुई
खुरपियां, गंडासे, हंसिये और कुदालें

ये सब करता है एक गुस्सैल लोहार
जिसका तना हुआ चेहरा
नाराज सी भौहें
बन्द सी जुबान
कमर में लिपटा एक गमछा और
देह पर मामूली सी बनियान

उसकी छप्पर के नीचे
एक ऐसा माहौल गढ़ते हैं
कि उसके सधे हुए मजबूत हाथ
इंसान के हक़ में रोज
झन्न-झन्न का संगीत रचते हैं
लोहार नफरती तलवार नहीं बनाते ।