जब तक शब्द नहीं उगेंगे; बीज नहीं 
बन पाएगा : शब्दों को होना होगा 
उन्माद : बेहोश कर देने वाला 
पागलपन : 
मैंने नहीं चुने हैं कोई प्रतीक 
तुम्हारे लिए : तुम 
हवा की सरसराहट 
के साथ काँपते हुए 
पहाड़ के नीचे जाती 
पगडण्डी के साथ 
गुम हो जाते हो ! 
मुझे तुमने नहीं 
दी कोई चमकदार 
रोशनी जो ढूँढ़ सके तुम्हें 
किसी भी अन्धेरे में ! अन्धेरा 
जो हमेशा 
सुनसान में पत्तों के साथ-साथ 
बजता है और मुझे 
भयाक्रान्त करने 
की चेष्टा करता है ! 
तुमने मेरी तन्द्राओं को प्रगाढ़ किया है 
जहाँ बेबस होकर मैंने अपने को 
छोड़ दिया है। मुझे लगा 
बार-बार 
कि मेरे पास न कोई जिस्म है, और 
न ही कोई आवाज़ 
मैंने ख़ुद को 
पिघलता हुआ लावा नहीं 
समझा है और न ही 
मेरे भीतर हुआ है 
किसी ज्वालामुखी का विस्फोट । 
मात्र इतना हुआ है कि पहाड़ों 
के पीछे से रौशनी का एक आकार 
मुझमें डूब गया है और 
मैंने किल्लोल करती नदियों, नालों व 
झरनों के साथ अपने को 
दौड़ते पाया है । 
मेरा जिस्म 
पिघल गया है 
हिमखण्ड-सा ! 
मुझे अपना कुछ 
पता नहीं लगता ! 
तुम 
कौन हो ? : तुमने 
मुझे उन्मादित ढंग से 
कर दिया है विवश !