Last modified on 5 सितम्बर 2023, at 01:09

पागल / पूनम सूद

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 5 सितम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम सूद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह जो पागल फिरता है न गलियों में
ज़ोर-ज़ोर से बोलता,
कहकहे लगाता हुआ,
उसके दिमाग में छेद है;
कहते हैं मोहल्ले वाले

अक्सर सोचता हूँ
अपने दिमाग में एक सुराख
मैं भी बना लूं

कुछ बोझ टपक कर कम हो,
कुछ हवा मिले दिमाग को,
और दिमाग हल्का हो जाये

फिर
शायद, मैं भी कुछ बोल सकूं
इतनी ज़ोर से कि दूसरा सुन सके
मेरे कहकहे भी सुनें वो
जिन्होंने आज तक मुझे देखा नहीं
मोहल्ले में