Last modified on 8 सितम्बर 2023, at 02:13

हमारी दुनिया एक शोकगीत है / कल्पना पंत

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:13, 8 सितम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना पंत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमारी दुनिया एक शोकगीत है
दड़बों में मुर्गे हैं
एक एक के ऊपर एक एक
कटने के लिए आलू प्याज की ढेरियों की तरह
और हम सात जनम के शोकगीत गा रहे हैं
खेत और जंगल कट चुके हैं
सियार खुले में दर्दनाक रोना रो रहे हैं पर बाज़ार फलों सब्जियों और सामानों से लकदक भरे हुए हैं
हाथियों के वर्षों से परिचित रास्तों पर बड़ी-बड़ी प्राचीरें हैं
और हम उन्ही को खतरा बताते हुए उनसे बचने के शस्त्र तैयार करते हुए विजयी होने का स्वांग भर रहे हैं
मार खा चोट खा टूटी टांग वाले खड़े हुए खुर वाले
अनगिनत घावों से भरे जीवित पशुओं के कब्रिस्तान बन रही हमारी
सभ्यता खुद पर निरन्तर गर्व करती उन्नत माथा उठाये चल रही है
पानी सिमट रहा है
और हम अभी तक अपना पानी रहने में मुदित हैं
अब हम अगली पीढ़ियों को क्या
जवाब देंगे
कि हम पानी-पानी हैं?