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मणिकर्णिका / विज्ञान प्रकाश

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मणिकर्णिका से उठते
कुछ अर्ध विरामों को निहारता
ये मन
कुछ वाचाल-सा हो जाता है,
जाह्नवी की धाराएँ
अपने पटल पर
दीये की लौ से खेलती
क्षणभंगुरता का एहसास देती हैं,
सोम से श्वेत उधार ले मेघ
बिखरे सितारों से
अठखेलियाँ करते हैं,
रात गहराती है
चिताएँ चटकती हैं
मौन प्रगाढ़ होता है!