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आह, होइतैक कोनो एहन लाइन / मीना झा

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रेल, स्टेशन और पसरल ई पटरी दूर-दिगन्त
लौह स निर्मित, मजबूत अविचलित, लौह सन
जोड़ैत गाँव स नगर, नगर-सा महानगर, धनोपार्जन लेल वा तीर्थाटन
ढोइत बेस भार राति-विहान ।जोड़ैत बाध-मैदान!
मिलाबैत त अछि मनुष्यो क ई आभासी दुनिया क' सामूहिक मिलन सन,
जाहि में न चेहरा, न ह्रदय बस व्यर्थ बहसक' होहल्ला
जकर न भूत छैक न भविष्य, बस छैक त निष्प्रयोजन वर्तमान मनमौजीपन।
आह! मनुष्य हृदयक ओहि कोमल संवेदना के की?
जकर अढ़ाई अक्षर जोड़ैत छैक, मिलाबैत छैक समस्त संसार के एक सूत्र में

सप्रयोजन, जन-जन, योजन-योजन!
न, अहि संवेदना के कोनो सूत्र नहि, न निर्मित अछि, न भ सकैछ
मजबूत ।नित्य, अविचलित लौह के, लौह सन,
संकुचित मस्तिष्क, क्षुद्र मन!

कोनो अभियंता, कोनो कारीगर के नियुक्ति, कि संविधानक' कोनो नियम
कि राजनीति के कठोर अनुशासन, जकर पालन होईत अनिवार्य
जे बनाबैत कोनो एहने लौह-यंत्र, सक्कत-मजबूत रेलक लाइन सन
मात्र जकर बटन दबाबैत, प्रेमक' प्याली ह्रदय में छलकैत
लोक परस्पर हँसैत-मुसकैत, विद्युत् तरंग सं धराशायी होइत
घृणा के अस्त्र, आतंकक' शस्त्र, हाथ मिलाबैत गला लगाबैत भरि प्रेम-ऊष्मा
गुटका के विज्ञापन सन!

आह, कि होइतैक कोनो एहेन लाइन रेलवे के लाइन सन!
मिलाबैत ह्रदय प्रकृति के कोर में बसल गाँव स कंक्रीटक' जंगल तक
जोड़ैत राष्ट्र के ओर छोर कश्मीर स कन्याकुमारी तक
हिम आच्छादित उत्तरी स दक्षिणी ध्रुव, पृथ्वी क' आपादमस्तक
सीमान भ जाइत निपत्ता एहि पार स ओहि पार तक
मानव पुछइत हालचाल मानवता के प्रेम सं मुस्कैत एकटा फूल लेने
आकि एक प्याली भफाइत चाय, जिजीविषा के टटका स्वाद संगे!
आह कि होइतैक कोनो लाइन !

सांता के उपहारक' जादूगरी की, की जकात के पाक अदायगी
समस्त पाबनि-त्यौहार, रंग इन्द्रधनुषी, की जगमगैत दियाबाती!
शक्ति वा भगवान भास्कर के पूजा, प्रार्थना के मंद-स्वरक' पांति
बहैत बसात संग हौले स ईश-ईसा, पैगम्बर-मूसा के एकहि भांति!
पत्थर के बुद्ध सरस स्रोत बनि बर्बर ह्रदय में होइतथि प्रवाहित
न कि आतंकक' क्रूर हथियार सं मटियामेट-विलोपित।
रचल नै जायत धरमक'युद्ध, धर्म-युद्धक' इतिहास
मानव जुडैत मानवता सं, प्रेमक' धर्म गुनगुनाइत खास।

आह कि होइतैक कोनो लाइन !
फीका पड़ैत सोना के चमक, न भ्रमित करैत चांदी के खनक
न बह्कबैत जर-जोरू-जमीनक' सनक, अपन दुर्दम्य वासना मनक।
होइतैक कोनो दोसर दुनियाक' मारि-काट, रक्तपात
न तिल भरि पीड़ा द पीड़ित करैत भौतिक ताप।
और हीरा, फैलाबैत, चमकाबैत सूफियाना प्रेम क चमक,
समयातीत, शाश्वत, निरंतर, सदा के लेल, ओ बहुमूल्य रतन!
आह कि होइतैक कोनो लाइन!