अक्षर-अक्षर स्वप्न स्वर्णिम
बुनैछी भावक' रजत तार स
एहि स्वप्न संसार में अवगाहन करैत
हम स्वतंत्र हम परतंत्र, आत्म्मुक्तिक' आकांक्षा
हमर निर्द्वन्द्व विचरण करैत,
हम मुक्त सब भार सं।
आत्मा–राग, प्रकृति के अनुराग
अंतरात्माक'जाग, तत्वक' ज्ञान लेल
लालसा–लिप्सा सं विराग, मोह-शोक सं फराक
अक्षर अनुशासित भाव, शब्द ब्रह्म रचि लेल
अस्तित्व मेटाक' एहि दिव्य स्वप्न में
हम सम्पूर्ण, मुक्त काम सं।
अक्षरक' विराट उज्ज्वल आकाश तल
मुक्तकामी आकांक्षा क' शरणस्थल
, दुःख-सुख, भय-पीड़ा छल-प्रपंच,
मोह औ' मोहभंग भेल निर्द्वंद्व
अक्षर-अक्षर पत्र, कल्पवृक्ष शब्दशक्ति
देल अभीप्सित, मुक्त हम अज्ञान सं।
कर्मभूमि, मर्मभूमि, ज्ञानभूमि, भावभूमि
अक्षरक' स्वप्न–संसार ई जीवनक मरुभूमि
मे बनल अछि हरित मरुद्वीपभूमि
विचरण करैत मंद, शीतल छांह तल
सहज मुक्त हम तप्त-रेत तूफान सं।