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कुण्डलिया / उपमा शर्मा

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1.
नारी तुमसे ही सदा, सर्जन की पहचान।
बेटा हो या बेटियाँ, तेरी ही सन्तान॥
तेरी ही सन्तान, गेह में खुशियाँ लाते।
इन दोनों के साथ, बनें इस जग के नाते।
कह उपमा यह बात, खिले सुख की फुलवारी।
 जिसका सम्यक् भाव, वही होती है नारी।
 
2.
माता होती गुरु प्रथम, सविनय करो प्रणाम
माँ के चरणों में सदा, बसते चारों धाम
बसते चारों धाम, ज्ञान नितदिन ही बाँटें
 कर कष्टों को दूर, चुने ये पथ के काँटे।
कह उपमा यह बात, जुड़ा जीवन का नाता।
 रखती अपने गर्भ, साँस देती है माता॥

3.
अविरल सदा प्रयास हो, ऊँची भरो उडा़न।
 गगन तलक पंछी उड़ें, मानें नहीं थकान॥
मानें नहीं थकान, दूर ये नभ तक जाते।
निशदिन करते काम, फल सदा मीठा पाते
कह उपमा यह बात, रहें जो दुख में अविचल।
भरते वही उड़ान, लगन हो जिनमें अविरल।

4.
जाऊँ जब मैं ले विदा, होना नहीं उदास।
 उड़ जाते पंछी सदा, कब रहते वह पास।
कब रहते वह पास, गेह बाबुल का न्यारा।
छूटा मुझसे आज, लगे पिय का घर प्यारा।
थामा पिय का हाथ, दुआयें सबकी पाऊँ।
हो न मैया उदास, विदा हो पिय घर जाऊँ।

5.
रीते जीवन में सभी, रंग और सब राग।
आन बसो तुम जब हृदय, मन हो जाये फाग।
मन हो जाये फाग, प्रेम की रितु ये आई।
कलित कुंज में रास, मनोहर ज्यों सुखदाई।
मुदित हुआ मन मग्न, नेह में हर पल बीते।
हृदय तुम्हारा वास, रहें न हाथ ये रीते।