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कोलाहल / शिव रावल

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घर में अजीब-सा 'कोलाहल' है
सड़कों पर भरमार है,
उससे भी ज्यादा मन के भीतर की उथल-पुथल है
आखिर क्या चाहता है यह 'गुमशुदा' -सा मन?
मालूम नहीं...!
दिशाएँ हैं पर सिमटी हुई
रास्ते हैं पर सुस्त-बेचैन
ख़ुद से कैसी यह बेग़ानगी है!
कैसे ख़ुद से यह बेख़ुदी है!
अजीब-सा धुआँ है जो हरदम दिल से उठता है
कहाँ से चलता है किस क़शिश को बढ़ता है
किस ख़्वाईश की तरफ फ़ना होता है 'शिव'
मालूम नहीं...!