धरती का ब्लैक होल
हो गई है
आज की राजनीति
जहाँ सब कुछ
हो जाता है हज़म
बदल जाती है पूर्णिमा
अमावस में
नहीं ढूंढ़ पातीं
सूरज की किरणें
निकलने को रास्ता
उलझकर मुर्झा जाती है
उनकी ऊर्जा
और बनकर रह जाती है
उस 'अंधकार' का एक हिस्सा ।
धरती का ब्लैक होल
हो गई है
आज की राजनीति
जहाँ सब कुछ
हो जाता है हज़म
बदल जाती है पूर्णिमा
अमावस में
नहीं ढूंढ़ पातीं
सूरज की किरणें
निकलने को रास्ता
उलझकर मुर्झा जाती है
उनकी ऊर्जा
और बनकर रह जाती है
उस 'अंधकार' का एक हिस्सा ।