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चीज़ें / राहुल राजेश

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हर नई चीज़
पुरानी चीज़ में बदल जाती है
और धीरे-धीरे एक दिन
कबाड़ बन जाती है

हम उन्हें कबाड़ियों के हाथ बेच देते हैं
और वही चीज़ें फिर नए आमंत्रण के साथ
बाज़ार में आती हैं

हम उन्हें फिर घर ले आते हैं

इस तरह
हमारे ही घर से निष्कासित चीज़ें
हमारे घर में फिर से
जगह बनाती हैं ।