Last modified on 9 नवम्बर 2023, at 00:21

काले तेन्दुए / प्रभात

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 9 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात का लिबास है उनका
रात के ही फूलों में चलते हैं
रात की ही खपरपतवार में पाँव धरते हुए
रात के ही पानी तक जाते हैं हर रात
रात में ही लौटते हैं वापस
जब बतख़ें करने लगती है आवाज़
देखना हो तो रात में ही दिख सकते हैं कहीं
 
चेहरे पर आती झाड़ियाँ हटाते हुए
दूर दूर तक फैली पहाड़ियों की
सफ़ेद भूरी चपटी चट्टानों पर ठहरकर
ऊपर झाँकते हुए
शुक्रिया अदा करते हैं चाँद का
बादलों में छिपे रहने के लिए
दिन में छिपे रहते है प्रेमियों की तरह
जब बाघ विचर रहे होते हैं सुनहरी घासों में
दिन के उजाले में दम्पत्तियों की तरह

काले तेन्दुओं का जोड़ा है वह
एक काली तेन्दुआ
एक काला तेन्दुआ
लम्बा सुतवाँ बदन है जिनका
बदन में है फुर्ती जब ज़रूरत हो जैसी
आसमानी बिजली सी आँखें हैं उनकी
रात का लिबास है उनका

27.05.23