Last modified on 12 दिसम्बर 2023, at 20:11

लय (दो) / हरीशचन्द्र पाण्डे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:11, 12 दिसम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जो उखाड़ा गेन्दे के फूल को तो देखा
जड़ें अभी कई फूल खिलाने को हैं

उजाड़ने की लय में यह भूल ही गया
ये फूल हैं आदमी नहीं ।