Last modified on 16 दिसम्बर 2023, at 14:27

विवशता / संगम मिश्र

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:27, 16 दिसम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगम मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक विवशता प्रकट हुई
लगभग सारे परिवारों में।
परिवर्तन पत्नी के प्रति
आया सबके व्यवहारों में॥

पूर्व काल में मर्यादा थी
छिपी हुई चञ्चलता थी।
जितनी आवश्यक, उतनी ही
मन में भरी सरलता थी।
अब के युवक काँपते रहते
क्रोधित पत्नी से थर थर।
दुबके रहते हैं निरीह से
ज्यों कोई कुत्ता कायर।

लगे हुए दिनरैन निरर्थक
अनभिलषित मनुहारों में।
परिवर्तन पत्नी के प्रति
आया सबके व्यवहारों में॥

पत्नी घर पर राज कर रही
अपनी कुटिल कनखियों से।
निज करतूतों को बखानती
अपनी सारी सखियों से।
घर के अन्य सदस्यों को भी
करती रहती है दुर दुर।
खुसुर पुसुर करते कोने में
डर के मारे सास ससुर।

घर से अधिक समय देती हैं
वधुएँ अब बाजारों में।
परिवर्तन पत्नी के प्रति
आया सबके व्यवहारों में॥

पति पहले परमेश्वर थे
अब अनुरागी अनुरक्त बने।
मंत्री-तंत्री-जन साधारण
सारे पत्नी भक्त बने।
कन्यायें शिवशंकर से अब
माँग रहीं केवल यह वर।
भगवन मुझे प्राप्त पति हो!
धनवान सुभग सच्चा अनुचर।

सरकारें भी वृद्धि कर रही
बहुओं के अधिकारों में।
परिवर्तन पत्नी के प्रति
आया सबके व्यवहारों में॥

इच्छा रखतीं मूरख पति के
संग अकेले रहने की।
घर में बड़े बुजुर्गों की कुछ
बात न आदत सहने की।
घर सन्तुष्ट अखण्ड रहे
मुखिया जीवित इस आशा में।
पर पति-पत्नी ही शामिल हैं
घर की नव परिभाषा में।

आग लग गई है सामाजिक
समदर्शी सुविचारों में।
परिवर्तन पत्नी के प्रति
आया सबके व्यवहारों में॥