फल लगने पर
यह भी निकला है बबूल ही ।
सोच समझकर
ही नेता इस बार चुना था ।
देखा-भाला था,
समझा था और गुना था ।
आज समझ में
आया यह भी सिर्फ़ भूल थी ।
पूर्ण व्यवस्था
सड़ी हुई है, हम क्या करते ?
तब्दीली
करने से नहीं, पद्धति से डरते ।
क्षुब्ध हवाएँ
ओढ़े इकरंगा दुकूल थीं ।
आऐगा बदलाव
न बिन हथियार उठाऐ ।
एक रंग में
दिखते सारे दाऐं-बाऐं ।
परिवर्तित
करने होंगे अब तो उसूल भी ।