देखकर चहक उठना
एक दूसरे को ,
एक नशा था, उतर गया ।
एक नींद सो लिए
पता नहीं चला,
भोर की अज़ीब थी ख़ुमारी ।
हूँ हाँ के साथ कटे
चुप्पीले दिन,
जीने की थी सब तैयारी ।
लू-सुर्रे-चौमासे
सब रुटीन में काटे
अभ्यासी हो गया बया ।
कुछ तो है जो
हरदम बेल बाँधता,
कह-सुनकर हलका हो लेते ।
प्रहसन को जीने की
इसी अदा पर,
बने नहीं दौर के चहेते ।
झरने को खोजते
मरुस्थल में
यहाँ लगे,
खोज नई, बिम्ब है नया ।
देख कर चहक उठना
एक-दूसरे को,
एक नशा था, उतर गया ।