Last modified on 18 जनवरी 2024, at 03:23

उलझन / शिवप्रसाद जोशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:23, 18 जनवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवप्रसाद जोशी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आवाज़ लगाता था खुले गले से
बच्चा सड़क पर : यथार्थ ! यथार्थ !
सुना तो मैं भी लगा देखने
दौड़कर निकल आया उसका दोस्त ।
इस नाम का कोई दोस्त तो नहीं मेरा
पर क्या पुकारने से मिल जाएगा
मुझे अपना यथार्थ ?
अगर मिला और मेरा न हुआ
तो फिर किसका होगा ?
अगर न कर पाया शिनाख़्त
फिर रहेगा या गुम हो जाएगा यथार्थ ?