Last modified on 22 जनवरी 2024, at 21:52

दुख हैं अभी हराम / कुमार सौरभ

Kumar saurabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 22 जनवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार सौरभ |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> हव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हवा में बुनियादी मुद्दे हैं
हवा आप भी खाइए
रामलला दुविधा में न पड़िए
हो निश्चिंत विराजिए
भूख बेकारी लाचारी और
सारे दुख हैं अभी हराम
आएँ मिलकर धुजा उठाएँ
बोलें जय-जय-जय श्री राम!