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तीरगी ठहरेगी कब तक रौशनी के सामने / नफ़ीस परवेज़

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तीरगी ठहरेगी कब तक रौशनी के सामने
सुब्ह आयेगी नयी फिर जिंदगी के सामने

मुख़्तसर-सी ख़्वाहिशों ने ये कभी सोचा न था
ग़म बड़े हो जायेंगे छोटी ख़ुशी के सामने

बेवफ़ाई को भी नादानी समझना इश्क़ था
दिल ने उनको चाहा उनकी हर कमी के सामने

मुद्दातों के बाद वह कुछ इस तरह हमसे मिले
रू-ब-रू जैसे हो कोई अजनबी के सामने

भूल कर शिकवे गिले मिल जायें वह शायद गले
हाथ अपने हम बड़ा लें बेरुख़ी के सामने