Last modified on 3 मार्च 2024, at 23:39

मोह-भंग / वैशाली थापा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 3 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैशाली थापा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्राचीन काल से जमे हुए
हिमनदों को पिघल जाना चाहिए
और हरी-नीली पृथ्वी को
पूर्णतः नीला कर देना चाहिए।

मृत घोषित हो चुकी ज्वालामुखी को
औचक उसांस भर कर
अपने भीतर संचित सारी कुण्ठा को उगल देना चाहिए।

फट जाना चाहिए अभ्र को
अकस्मात् मन फट जाने पर
जंगलियों को अपनी काया पर
ढो-ढो कर अग्नि
शहरों की तरफ दौड़ जाना चाहिए।

अलविदा कहते हुए अब नहीं लरज़ते होंठ
वह सारा कम्पन भर जाना चाहिए
अर्थ के गर्भ में
और तुम्हारे-मेरे कदमों के नीचे सुस्ताती इस ज़मीन को
दो टुकड़ों में टूट जाना चाहिए।

हाँ, प्रलय आ जाना चाहिए
जब हमारा आलिंगन-पाश टूट जाए
और अचानक हम विपरीत दिशाओं में मुड़ कर भागने लगे।

क्या प्रेम का कागज़ पर मुहरो से विच्छेद संभव है?
दो लोगों का अलग हो जाना
इस तरह सामान्य बात कैसे हो गई?