कराह नहीं
किलकारियों से मदहोश हैं दीवारें
चेहरों पर मायूसी का मंजर नहीं
आनंद का अतिरेक है
मौत से लड़ने की जद्दोजहद
ज़िन्दगी नज़्म बनकर उतर रही है
प्रसव-पीड़ाओं में
अभी-अभी आँख मटकाता
नर्म-नर्म हाथ-पाँव फैलाता
ज़मीं पर उतरेगा कोई बच्चा
और स्वागत में उसके
खिलखिला उठेंगे सैंकड़ों बच्चे
पूरा अस्पताल एक बार फिर
महक उठेगा अभी-अभी जन्मे
शिशु की ख़ुशबू से
मौत एक बार फिर थर्राएगी ज़िन्दगी से