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बिटिया का पिता / सुनील कुमार शर्मा

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स्कूल, ऑफिस,
मेला या सिनेमा से अगर
घर ना आये
समय से बिटिया
तो मन में तमाम तरह की आशकाएँ
कर जाती हैं घर

ढाई इंच की स्क्रीन
से निकलता एक शब्द
 'अनरीचेवल'
खीच जाता है ढेरों बिम्ब ...

कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई
सड़क पार करने में
कहीं दोस्त या कोई अनजान शख्स
जानवर तो नहीं बन गया

आक्रोश-हताशा-भय के
निरंतर उठते चक्रवात में
छटपटाता है पिता
निशब्द, हो कर स्तब्ध ...
बिना मरे ही
कितनी मौत मर जाता है पिता

वो चालीस की उम्र
में यूँ ही नहीं
पचपन का हो जाता है

आसान नहीं होता
बिटिया का पिता होना
सचमुच नहीं होता॥