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मुलाक़ात / सुनील कुमार शर्मा

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कितनी बारिशों को
पिया हमने,
कितने बसंतों को
जिया हमने

कभी पिघलती ग्रीष्म में
खुद को तपाया
शिशिर को
उम्मीदों से गर्माया

पतझड़ में भी
स्वयं पीड़ा-पतिकाओं को गिराया
हर बार कुछ नए
सिलसिलों को उगाया

कभी खुद को खुद से
न मिलाया हमने
इस सफ़र में बाकी है
बस एक मुलाकात॥