Last modified on 25 मार्च 2024, at 00:10

बस कंठ नीले ना हुए हैं / वैभव भारतीय

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 25 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज़हर हम सबने पिया
बस कंठ नीले ना हुए हैं
जी गया सुकरात बस
दर्शन नशीले हो गये हैं।

क्यों कहो दुनिया अजब है
महज़ गिनती में सजग है
जब तलक है साँस जग में
तुम अलग हो, सब अलग हैं।

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
युद्धों से कुछ-कुछ मेला खाता
रख दिये हथियार जिसने
रह गया वह ही अभागा।