Last modified on 3 मई 2024, at 21:22

बारिश / विनोद भारद्वाज

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 3 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अवध का एक पुराना मिनिएचर देखकर
बारिश में तीन वेश्याएँ चढ़ीं बस में
बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थीं वे
सिनेमा के टिकटों को कसकर मुट्ठी में दबाए
गीले कपड़ों में किसी घटिया सेण्ट में महकती हुई

बस में हलचल-सी मच गई
कई लोगों को बचाना है अपने को
इन तीन वेश्याओं से
पर हिम्मत देखिए, वे पूछती हैं एक पढ़े-लिखे लड़के से
भैया, कोटला जब आए तो बताना

मिनी बस का मनचला कण्डक्टर
लोगों को धक्के दे-देकर भीतर भरते चले जा रहा है
तीन वेश्याओं का उसे क्या डर है
बेरहमी से खींचता है एक वेश्या के हाथ से
वह पाँच का मुड़ा-तुड़ा नोट
कण्डक्टर का अन्दाज़ पसन्द नहीं आया उस वेश्या को
उसने मुँह बनाया
फिर तीसरी बार वॉर्निंग दी उस लफंगे को
जो बार-बार सटे चले जा रहा था
अचानक उसे सीट मिल गई
एक भव्य क़िस्म की बुढ़िया
एक स्टॉप पहले ही उतर गई थी

बारिश, सिनेमा के टिकट और घिरे आसमान ने
एक दिव्य क़िस्म के मूड और मस्ती में ला दिया है
इन तीन वेश्याओं को
एक वेश्या बैठ जाती है
दूसरी की गोद में
वह जीभ निकालती है एक बच्चे को देखकर

एक पढ़े-लिखे अधेड़ ने उन लड़कियों से
खूब शराफ़त से बात की
वेश्याओं से बात करने का उसका यह पहला मौक़ा था
वह शायद अपना स्टॉप भी भूल गया
इतनी झमाझम बारिश में
आख़िर उतरा कैसे जाए

एक चश्मे वाला यूनिवर्सिटी स्टूडेण्ट
वेश्याओं के इस तरह से सटने का बुरा नहीं मान रहा
अपनी छतरी, झोले और किताबों को सम्भालता हुआ
इस सफ़र के लिए
वह ईश्वर को धन्यवाद दे रहा है

तीन वेश्याएँ उतर गई
तेज़ बारिश में
सब लोगों ने उन्हें दूर तक सड़क पार करते देखा

"अबे चल ओए" — कण्डक्टर बरसा ड्राइवर पर
बस में सन्नाटा था
वे तीन वेश्याएँ थीं

पर भला वे वेश्याएँ कैसे थीं, जब किसी ने उन्हें
कोठे से उतरते नहीं देखा

यह भी तो हो सकता है कि वे
बारिश के साथ बादलों से उतरी हों
अप्सराएँ हों !