Last modified on 12 मई 2024, at 00:10

सफलता / निमिषा सिंघल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 12 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निमिषा सिंघल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बुझ रहे हो दीयें सारे,
ओट कर जलाए रखना।

उष्ण मरूस्थल से भी,
तुम निकाल लोगे जल
विश्वास को बनाए रखना।

अंधकार व्याप्त हो सूर्य की तलाश हो,
मार्ग जुगनूओं की रोशनी से तुम सजाए रखना।

मुश्किलें मिले अगर, डर के लौटना न तुम
आत्मविश्वास की चमक चेहरे पर खिलाए रखना।

मान को बनाए रखना,
सम्मान को बचाए रखना।
रच दो इतिहास ,
ऐसा परचम फहराये रखना
ज्ञान की मशाल से रोशनी फैलाएँ रखना।
जीत लेना दुनिया को,
ह्रदय सदा विशाल रखना।

अस्थियाँ जलाकर अपनी वज्र का निर्माण कर,
सूर्य की तपिश को भीनी चांदनी बनाए रखना।

तप कर ।
चोट ख़ाकर ही
निखरता है सोना खरा,
उस तपन की शुद्धता को व्यक्तित्व में समाये रखना।

स्वेद की बूंदों को।
ललाट पर सजाए रखना
कर्म करके भाग्य रेखा को पुनः चमकाए रखना।
श्रम की चमक घोल अपने कर्म में मिलाएँ रखना।

हौसला विमान हो सपनों की उड़ान हो,
रोक पाए न आंधियाँ ,
ऐसा जज़्बा -ए तूफान हो।
जीत की ललक को अपनी आंखों में सजाए रखना।

पर्वतों को तुम झुका कर रास्ता अपना बना लो,
गति कहीं अवरुद्ध ना हो मंजिले ‘जिद ‘तुम बना लो।
लक्ष्य निरंतर भेद कर,
खुद को अलभ्य बनाये रखना।