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पहेली / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

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यह नहीं समझा कि जग में
फूल भी क्यों शूल बनता
कुसुम का कोमल हृदय क्यों
झुलस कर है शूल बनता।
अमृत के वर विटप तल क्यों
जहर का है कीट पलता
पूर्णिमा के चॉंद से भी
तीव्र हालाहल निकलता।
पुण्य की शुचि ओट में ही
पाप का संसार पलता।
प्रणय की बुझती चिता पर भी
निठुर छल है विहॅंसता।
तूफान में पतवार कोई
छीनता मॅंझधार कैसे?
गरलमय कटु प्यार कोई
पालता चुपचाप कैसे?