Last modified on 27 मई 2024, at 16:18

उद्गार / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 27 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज' |अनु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फूलों पर पग धरने में क्या
वह तो अतिशय सुकर सरल
शूलों पर चलना दुष्कर है
व्रती अचंचल वहाॅं सफल।

तरल मोम सा हो सकता है
सुख से पुलक पूर्ण जीवन
कुंदन उसे बनाता लेकिन
केवल पीड़ा का अंजन।

रुनझुन रुनझुन कर बजती है
नहीं जवानी की पायल
छिन्न शिरा के छूम-छनन में,
वह लहराती है अविकल।

रुकने वाला हार चुका है
मंजिल पर ही क्यों न रुके
अविरत चलने वाला विजयी
भले राह में चरण थके।

वह पीयूष गरल ही है
जो जीवित को मृतवत कर दें
उससे तो सौ बार भला जो
कालकूट जीवन भर दे।