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वेदना / प्रिया जौहरी

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विश्व का इतिहास मानव वेदना का इतिहास लगता है
सृजन ,विध्वंस दोनों इस वेदना का ही परिणाम जान पड़ते है
वेदना मन की अंतवृत्ति है
जिसके दो रूप है सुखात्मक और एक दुःखात्मक
आनंद की अपेक्षा मानव वेदना में अधिक जीता है
साहित्य की हर विधा
वेदना की स्याही से ही तो अलंकृत है
मानव की वेदना मौलिक और आधारभूत है
कभी ये मुखरित हो जाती कभी मौन
यही वेदना हिटलर में
नकारात्मक रूप में उभरकर
मानवता का विध्वंस करती है तो
कभी गाँधी जी की
सकरात्मक चेतना बनकर
मानवता का कल्याण ।