अक्सर
किसी बड़े दरख़्त के नीचे उगने वाले पौधे
बड़ी संभावनाएँ होते हुए भी
पनप नहीं पाते
क्योंकि अपने हरे-भरे पत्तों और
घने साये की आड़ में
उनके हिस्से की भी धूप और
हवा खा जाते हैं ये पेड़
और तो और
उनके साये में आकर
शरण लेने वालों के
पैरों तले कुचले-मचले भी जाते हैं ये पौधे
समय आने पर पेड़ की पत्तियाँ
गिर जाती है
पेड़ ठूंठ हो जाता है
और साया कहीं गुम
उस वक़्त भी पेड़ का अधूरा छोड़ा हुआ
काम करती हैं उसकी जड़ें
वो पौधों के हिस्से की खाद व नमी
अपनी सारी शक्ति से खींच लेती हैं
सोख लेती हैं
अपने में
और पौधे समय से पहले ही
बिना खिले बिना बढे ही
दम तोड़ देते हैं