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किताब खोलना / पओचा पोज़ाज़िमिस्क़ी / अम्बर रंजना पाण्डेय

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जब साबुत हाथोंवाले मेरी कविताएँ सुनें
तो तुम उन्हें बताना कि कितने ख़ुशनसीब हैं वे

हाथ बटन खोलने के लिए
या अनार फोड़ने के लिए तो नहीं बने
हाथ तो बने हैं किताब खोलने के लिए

उन्हें नहीं करना पड़ता इन्तज़ार
कि माँ या भाई या बहन या पापा पलट जाएँ पन्ना
बैठी रहती हूँ देर तक इन्तज़ार करती हूँ हवा का
कि पलट जाए पन्ना और मुझे पता लग सके
क्या हुआ राक्षस की गुफ़ा में बन्द परी का

अब सीख गई हूँ,
धीरे - धीरे मैं सीख गई
किसी को नहीं पता कि क्या होगा आगे ।

केवल किताब की बात होती तो मुझे सबर न होता
मगर यह बात तो जीवन की है
किसी को नहीं पता कल क्या होगा ?

इस किताब का पन्ना कोई नहीं पलट पाता
सब करते है इन्तज़ार हवा का मेरी तरह ।

मूल पोलिश से अनुवाद : अम्बर रंजना पाण्डेय