जब बोलो तो
ध्यान रखो !
किसी के सम्मुख बोल रहे हो ।
ग़ैरहाज़िरों को भी हाज़िर समझो ।
याद रखो !
मरे और बिछड़े हुए भी
दूर कहीं सुनते हैं हमें ।
दूर कहीं सुनते हैं वे भी
जो बनेंगे हमारे वारिस ।
जब बोलो
तो याद रखो !
यह सब किसी गुप्त ग्रन्थ में लिखा होगा
जब बोलो
तो केवल कण्ठ से ही न बोलो
दिल से बोलो ।
और जब लगे
कि होंठों से हृदय का रिश्ता टूट गया है,
तो मौन हो जाओ ।