नहीं लिखते देती कविता आज
भीतरी आग
जलाती है पन्ने
एक-एक करके
नहीं चाहिए मुझे कविता
कहती है आग
चाहिए मुझे तेरी छाती
दहकने के लिए
नहीं लिखते देती कविता आज
भीतरी आग
जलाती है पन्ने
एक-एक करके
नहीं चाहिए मुझे कविता
कहती है आग
चाहिए मुझे तेरी छाती
दहकने के लिए