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नया इल्म / नीना सिन्हा

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तफ़सील-सी बातों का
बस इतना मर्म रहा कि
उन मुलाकातों से बड़ा भी कोई नया इल्म रहा
वही जो तुमने कहा नहीं
वही जो मैंने सुना नहीं

इक वादियाँ सरपरस्त-सी
पसरी रही हमारे चारों ओर
जहाँ तन्हाइयाँ गूँजती रही
शोरगुल भरे आसमाँ में!

कितने क़दम परस्पर यूँ ही रोक लिए गये
कि
हर चाह की कोई राह नहीं होती
मगर
कभी चाँद से मुलाकात को
खुले स्याह आसमाँ तले आना होगा

वही ईश्वर
जिसने धूप दी सहरा भर कर
उसी ने आसमाँ से राहतों की भी बारिश की है!

कोई तुम्हारे फैसलों का क्यों
निगाहबाँ होगा
तुम्हारी दुनिया के सच, झूठ
तुम्हारी परछाइयाँ हैं!

अपनी मंजिलों की ख़ूब तस्दीक करना
राह से गुजर कर भी
जाती हुई कई राहें हैं!