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रज़ा जन्मशती पर चार कविताएँ / ध्रुव शुक्ल

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1
पूजा की थाली

पुष्पों की पंँखुड़ियों से भरी
उनकी पूजा की थाली से
बिखर रही है बेहद के मैदान में
उनके हाथों से छिटकी
रंगों की अक्षत

2
अलौकिक माॅं



नील नीरव पर अँकित लाल बिन्दु
जैसे चेहरा माॅं का
पीले रंग पर खिंची माहुर की रेखा
जैसे माॅं के पाॅंव
हवाओं में लहराती रंगों की छाप
जैसे चूनरी माॅं की
कैनवस के माथे पर अँकित काला डिठौना
जैसे कोई शिशु नवजात
बैठी है नवाँकुरों के बीच
कोई पुरातन अलौकिक माॅं

3
कैनवस के आँगन में

आकाश के माथे पर अँकित सूर्य
उतर आया है कैनवस के आँगन में
सृष्टि का वह आदि बिन्दु
न जाने कबसे
उन्हीं पर लगाए है ध्यान

4
रंगों का उपहार

अन्त नहीं रंगों के अँकुरण का
वे भरे हैं आकाश में
खिले हैं वृन्तों पर
झूम रहे हैं टहनियों पर
झरते हैं जहाॅं से
पीक उठते हैं फिर वहीं
रंग बसन्त के उपहारों की तरह
बसे हैं उनके चित्रों में