Last modified on 15 अगस्त 2024, at 10:48

राजमार्ग पर / राहुल शिवाय

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 15 अगस्त 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राजमार्ग पर सिसक रहे हैं
गेहूँ, मक्का, धान
धीरे-धीरे उघर रहा है
सत्ता का परिधान

ज़ख़्म चीरकर
खेत सींचकर
उम्मीदों की रेत सींचकर
खोज रहे हैं पैंसठ प्रतिशत
अपना हिन्दुस्तान

प्रतिरोधी स्वर
पाँव मोड़कर
हर ठोकर से आस जोड़कर
कौर-कौर में चाह रहे हैं
फिर अपनी पहचान

ताज़ा-बासी
रंग सियासी
जुमलों की दिन-रात उबासी
पछुआ-पुरवा बनकर कबसे
भेद रहे हैं कान।