Last modified on 31 अगस्त 2024, at 13:09

तुम सदा करती रहो मेरा इंतिज़ार / कंसतन्तीन सीमअनफ़ / अनसतसीया गूरिया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 31 अगस्त 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कंसतन्तीन सीमअनफ़ |अनुवादक=अनसत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम सदा करती रहो मेरा इंतिज़ार
डटकर करती रहो, दिन-ब-दिन, बार-बार
पीली बारिश मन को तेरे करे उदास
बर्फ़ या लू के झोंके नाचे घर के पास
जब दूसरों के हर कोई भुला दे सरोकार -
तुम तो करती रहो मेरा इंतिज़ार
दूर परदेस से कोई न आए जब चिट्ठी
साथ तड़पनेवालों को रहे जब सब्र नहीं

तुम तो करती रहो मेरा इंतिज़ार
«भूल जा» कहनेवालों को लात मारकर दो दुत्कार
बेटे को या माँ को हो जाए जब यकीन
कि अब मैं नहीं हूँ, मेरे दोस्त जब मेरे बिन
बैठे अलाव के निकट उठाएँ जाम कड़वा -
«याद रहे हमेशा» न कहो जैसे विधवा
तम तो करती रहो मेरा इंतिज़ार
लौटूँगा मैं मौत को हराकर लाखों बार

जिसने न किया हो मेरा इंतिज़ार
वह कहे - ख़ुशक़िस्मत, भाई बख़्तियार ।
कैसे वह समझता इंतिज़ार किए बग़ैर
आग की दरिया में दिन-रात बराबर तैर
मेरे साथ जल-जलकर इंतिज़ार करते सदा
तुम्हीं ने मुझे कैसे दिन-ब-दिन रखा ज़िन्दा ।
कैसे मैं ज़िन्दा रहा, सिर्फ़ हम-तुम जानेंगे, यार -
कि लाजवाब किया है तुमने मेरा इंतिज़ार ।