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अन्तराल / महादेव साहा / सुलोचना

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मनुष्यों की भीड़ में मनुष्य छुपे रहते हैं
पेड़ों की ओट में पेड़,
आकाश छुपता है छोटी नदी के मोड़ पर
जल की गहराईयों में मछलियाँ;

पत्तों की ओट में छुपते हैं जंगली फूल
फूलों की ओट में काँटा,
मेघों की ओट में चाँद की हलचल
सागर में ज्वार-भाटा ।

आँखों की ओट में स्वप्न छुपे रहते हैं
तुम्हारी ओट में मैं,
दिन के वक्ष में रात्रि को रखते हैं
इस प्रकार दिवसयामिनी ।
 —
मूल बांगला भाषा से अनुवाद : सुलोचना

लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
              মহাদেব সাহা
                 অন্তরাল

মানুষের ভিড়ে মানুষ লুকিয়ে থাকে
গাছের আড়ালে গাছ,
আকাশ লুকায় ছোট্ট নদীর বাঁকে
জলের গভীরে মাছ;

পাতার আড়ালে লুকায় বনের ফুল
ফুলের আড়ালে কাঁটা,
মেঘের আড়ালে চাঁদের হুলস্তুল
সাগরে জোয়ার ভাটা।

চোখের আড়ালে স্বপ্ন লুকিয়ে থাকে
তোমার আড়ালে আমি,
দিনের বক্ষে রাত্রিকে ধরে রাখে
এভাবে দিবসযামী।