Last modified on 19 सितम्बर 2024, at 01:11

जलना / प्राणेश कुमार

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 19 सितम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राणेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे जलते हैं हमें देख कर
जलते हैं
लेकिन सूरज की तरह नहीं
मैं चाहता हूँ वे जलें
सूरज की तरह
लेकिन सूरज
उन्हें पसंद ही नहीं।

उगते सूरज की किरणों से
उनकी आँखें चौंधिया जाती हैं
वे बंद हो जाना चाहते हैं
अपनी अँधेरी कोठरी में।

पाल रखे हैं उन्होंने
जहरीले साँप
कीड़े-मकोड़े-बिच्छू
रहते हैं वे
अँधे सीलन भरे कमरे में
काट खाना चाहते हैं
हर आगंतुक को।

झूमते पेड़,
बहती हवा,
चिड़ियों की चहचहाहट,
बहता पानी
उन्हें पसंद नहीं
उन्हें पसंद है
अपने कमरे की दुनिया।

वे जलते हैं हमें देख कर
मैं कहता हूँ
जलो सूरज की तरह
लेकिन सूरज
उन्हें पसंद ही नहीं है।