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अहूँ के ई बात बूझल / दीपा मिश्रा

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हम स्त्री सब कतेक सामर्थ्यसँ भरल छी जे हमरा भीतर एकटा
जीवकेँ विकसित क' जन्म देबाक ईश्वरीय क्षमता अछि
ओ अंग केहन अप्रतिम अछि जे
नौ मास भ्रूण संग बातचीत करैत ओकरा अपन कोखमे ल' के पोसैये

एकटा पूरा पीढ़ी जे संग संग बढ़ैये
ओ की ओहिना जन्मैत देरी ठाढ़ भ' गेल
ओकरा हमर स्तन पोसलक
हमरे दूध,हमरे शोणित पीबि आइ ओकरामे एतेक बल आबि गेलै जे ओ हमरे अपनासँ कमजोर बुझय लागल?

चारि दिन ओ लाल रंग हमरा की अछूत करत
ओ त' आर हमरा पवित्र बना जाइए
देहसँ पारिजात झड़ि नब फूलसँ पुनः लदि जाइए जेना
ओ त' हमर मोनकेँ आरो सशक्त बना जाइए
एतेक सहि सकब की साधारण छै?

की करब आर कतेक उड़ायब अहाँ हमर अंगक उपहास
जे गारि अहाँ ओकरा संगे जोड़ि पढ़ैत छी ,सुनैत छी आर किछु नै कहैत छी
चकित होइत छी हम जे हमर देहक भीतर जहिया धरि रही
अहूँ त' स्त्रिये ने रही, पृथक् अस्तित्व कतय छल?

हँसी अबैये सोचितो जे हम एतेक क्षमता रहितो आइओ ओतै छी जतय रही
वा कहुखनकेँ होइए आरो पाछाँ जा रहल
किएक त' आगाँ बढ़बाक सेहन्ता हमरा कहिओ नै रहल
संग चलबाक मोन अबस्से छल
तैं डेगो उठेलौं मुदा आब सोचैत छी
किएक ?
हमरा अहाँमे कतौ कोनो तुलना नै संभव
अहूँके ई बात बुझले अछि.