Last modified on 24 नवम्बर 2008, at 13:06

ग़ुलाम / सोमदत्त

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:06, 24 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोमदत्त |संग्रह=पुरखों के कोठार से / सोमदत्त }} <Poem...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैंचियाँ जानी तो खुश हुआ
किस ख़ूबसूरती से कतरती हैं बढ़े बाल
किस बारीक़ी से बाहें, पाँयचे, गले
कितनी ख़ूबसूरती से चिड़ियाँ, फूल,
मगन था डूबा था लहालोट था
यकायक उनने कतरना शुरू कर दीं
हमारी बाँहें
हमारी ज़ुबानें
हमारे सिर
बहुत देर हो चुकी थी यह जानते-जानते
कि हम
उनके ज़रख़रीद ग़ुलाम हैं