Last modified on 21 नवम्बर 2024, at 18:04

कोई और / सुशांत सुप्रिय

Adya Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 21 नवम्बर 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशांत सुप्रिय |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक सुबह उठता हूँ
और हर कोण से
खुद को पाता हूँ अजनबी

आँखों में पाता हूँ
एक अजीब परायापन

अपनी मुस्कान
लगती है न जाने किसकी

बाल हैं कि
पहचाने नहीं जाते

अपनी हथेलियों में
किसी और की रेखाएँ पाता हूँ

मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि
ऐसा भी होता है

हम जी रहे होते हैं
किसी और का जीवन

हमारे भीतर
कोई और जी रहा होता है