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अबोध / अनामिका अनु

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काग़ज़ पर आसमानी आकाश बनाकर
वह बैठा है चौखट पर
माँ जैसे घर में घुसती है

वह गले लगाकर पूछता है:
मैंने तो पूरा आकाश काग़ज़ पर जमा रखा है
बिना आकाश के तुम कैसे रही बाहर?

माँ ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा  :
वह दूसरा आकाश है जो बहुत बड़ा है