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तथाकथित प्रेम / अनामिका अनु

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अलाप्पुझा रेलवे स्टेशन पर
ईएसआई अस्पताल के पीछे जो मंदिर हैं
वहाँ मिलते हैं
फिर रेल पर चढ़कर दरवाज़े पर खड़े होकर
हाथों में हाथ डालकर बस एक बार ज़ोर से हँसेंगे

बस इतने से ही बहती हरियाली में
बने ईंट और फूस के घरों से झाँकती
हर पत्थर आँखों में एक संशय दरक उठेगा
डिब्बे में बैठे हर सीट पर लिपटी फटी आँखों में
मेरा सूना गला और तुम्हारी उम्र चोट करेगी
मेरा यौवन मेरे साधारण चेहरे पर भारी
तेरी उम्र तेरी छवि को लुढ़काकर भीड़ के दिमाग़ में ढनमना उठेगी

चरित्र में दोष ढूँढ़ते चश्मों में बल्ब जल उठेंगे
हमारे आँखों की भगजोगनी भूक-भूक
उनकी आँखों के टार्च भक से

हम पलकें झुकाएँगे और भीड़ हमें दिन दहाड़े
या मध्यरात्रि में मौत की सेंक देगी

तथाकथित प्रेम, मिट्टी से रिस-रिस कर
उस नदी में मिल जाएगा
जिसे लोग पेरियार कहते हैं