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विरासत / सुकेश साहनी

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खुदाई के दौरान
मिला है एक शहर
और
ढेरों फॉसिल्स–

इत्मीनान से हुक्का गुड़गुड़ाते बूढ़ों के फॉसिल्स
खाना पकाती–पकाती एक जैसी माँओं के फॉसिल्स
हँसते–हँसते बच्चों के फॉसिल्स
मानव मूल्यों की उष्मा बिखेरते फॉसिल्स
पैट्रो.और कोयला भण्डारों का पता बताते फॉसिल्स
हैरान हैं वैज्ञानिक–

पूरा शहर लगता है एक घर जैसा
हर एक घर, शहर जैसा
परेशान हैं वैज्ञानिक–
यह कैसा शहर है जहाँ
आदमी–आदमी में
और
घर–घर में
फर्क करना है मुश्किल

आज नहीं तो कल
महाविनाश हमें भी लेगा
अपनी चपेट में
एकाएक ये नगर भी दब जाएँगे।
मनों मिट्टी के नीचे

फिर सभ्यताएँ लेंगी जन्म
खोद निकालेंगी इन नगरों को भी
जहाँ होगे मकान ही मकान

एक ही घर को बाँटते
कई आँगन–कई दीवारें
एक ही घर की छत पर उगे
कई टी० वी० एण्टीना

होंगे कुछ फॉसिल्स भी–
मृत्यु की प्रतीक्षा में पथराई बूढ़ी आँखों के फॉसिल्स
रोती–कुरलाती माँओं के फॉसिल्स
बारूद के भण्डारों का पता बताते फॉसिल्स

इतना ही हम विरासत में दे जाएँगे
हमने बेच दी है अपनी हड्डियाँ
बदले में खरीद ली है दुम
दुमों के नहीं बनते फॉसिल्स
अच्छा फॉसिल्स बनने के लिए
हममें कुछ हड्डियाँ होनी ही चाहिए

कुछ तो करें उस शहर का
वरना हम क्या छोड़ जाएँगे।