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विदाई / नेहा नरुका

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‘विदाई’ का मतलब एकता कपूर का
लिजलिजी भावुकता परोसने वाला
सीरियल ही नहीं होता सिर्फ़

जिसके ज्यादातर एपिसोड में गोरे रंग की साधना
बाँधनी प्रिंट की रंग-बिरंगी साड़ियाँ पहनकर
रोते-रोते मॉडलिंग किया करती है

इस देश की सबसे महँगी दुकान से ख़रीदी गई
साधना साड़ी’ पहनकर भी नहीं काटी जा सकती
विदाई की बेला…

विदाई यातना का समय है
जिसमें अभी-अभी पटरियों से सरपट भागती
रेलगाड़ी से फेंकी गई है एक शिशु स्त्री
वह घायल, ज़ख़्मी नन्हीं बालिका
विदाई की बेला के बाद वृद्धा में बदल जाती है

विदाई की बेला के बाद
उस बूढ़ी स्त्री की जीभ में स्वाद रह जाता है, बस,
उसके कान में रह जाता है बासी पड़ चुका कोई संगीत
नाक में रह जाती है तरह-तरह की गन्ध
त्वचा में रह जाती है प्रेम और उत्तेजना की छुअन
आँख में रह जाते हैं कई-कई दृश्य
कल्पनाओं में रह जाते हैं आधे-अधूरे बिम्ब

चेहरे पर झुर्रियाँ
बालों में सफ़ेदी
पैरों में थकान
नींद में स्वप्न
स्वभाव में सनक
और जीवन में अश्रुमग्नता रह जाती है
विदाई की बेला के बाद

फिर तमाम उम्र ये वृद्धा, हर किसी की
विदाई पर रुदाली बनकर प्रगट होती है

ये गला फाड़कर किसी भी अपरिचित या परिचित लड़की की
विदाई पर एक जैसे स्वर में रो लेती है

औरों के लिए इसका रोना भी हो जाता है संगीत का बजना

पर ये कोई संगीतज्ञ नहीं
असलियत में इसे रोने के अलावा और किसी
हुनर में दक्षता प्राप्त नहीं करने दी गई
कहा गया ये तो पैदा ही ‘विदाई की रस्म’ निभाने के लिए हुई हैं।